राजेश द्विवेदी
रायबरेली। की लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है । जिले के कांग्रेसी जानते हैं कि लोकसभा सीट जीत पाना उनके लिए नामुमकिन है। इसीलिए लगातार गांधी परिवार को मैदान में उतरने की फरियाद रायबरेली के कांग्रेसी नेता कर रहे हैं। लेकिन क्या प्रियंका गांधी के मैदान में आने के बाद एक बार फिर कांग्रेस रायबरेली का किला फतेह कर पाएगी या नहीं तो वोट की गिनती के बाद ही पता चलेगा। लेकिन जिले भर के कांग्रेसियों के अंदर इतना दम अब नहीं बचा है वह बिना गांधी या गांधी परिवार के जिले का कोई कांग्रेसी नेता चुनाव लड़ सके। कहने को तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नाम नेताओं के पीछे जोड़े जाते हैं । लेकिन कांग्रेस पार्टी के झंडे को लेकर चलने वाले नेताओं को भी यह पता है कि उनके कर्म इसमें अच्छे नहीं थे कि रायबरेली की जनता और कांग्रेस कमेटी का नेतृत्व किसी लोकल आदमी को टिकट देकर अपनी जीत सुनिश्चित कर सके । हार और जीत का चुनाव के बाद ही पता चलेगा। लेकिन कांग्रेस पार्टी को एक बार फिर से मंथन करना चाहिए कि आखिर सुपर पावर पीएम कहलाने वाली सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में 20 साल में कोई भी ऐसा नेता नहीं तैयार हो सका जो कांग्रेस की नीति को जनता तक पहुंच सके और गांधी परिवार का सलाहकार बन सके। ऐसा नहीं है कि यहां की जनता ने कांग्रेस के केवल गांधी परिवार को ही चुना है बल्कि हर बार कांग्रेस के ही नेता थे अपना प्रतिनिधि बनाया है। कैप्टन सतीश शर्मा और शीला कौल इसके उदाहरण हैं । लेकिन 20 साल तक रायबरेली का प्रतिनिधित्व करने वाली श्रीमती सोनिया गांधी का विकास यहां के कांग्रेसी जनता तक आज भी नहीं पहुंचा सके हैं । शायद यही कारण है कि एक के बाद एक तमाम विधानसभा सीट है गवाने के बाद अब कांग्रेसियों को सीधे प्रियंका गांधी को छोड़कर और भी कोई याद नहीं आ रहा है। क्योंकि जिले के कांग्रेसी नेताओं ने कभी भी अपने कार्यालय से बाहर निकाल कर जनता की समस्याओं को सुनने समझने और उसका निस्तारण करने की कोशिश ही नहीं की । जिन मुद्दों पर इन नेता अपना प्रदर्शन भी किया तो वह प्रदर्शन राष्ट्रीय या प्रदेश नेतृत्व के आवाहन पर ही किया गया। कभी जिले की मूलभूत समस्याएं, कानून व्यवस्था ,गरीबों की बदहाल हालात पर कभी भी अपनी आवाज नहीं उठाई। कहते हैं की राजनीति में महत्वाकांक्षा सबसे ज्यादा होती है और यही हाल जिले के कांग्रेसी नेताओं का है। वह सब अच्छी तरह से जानते हैं कि गांधी परिवार रायबरेली में अपनी साख को बचाने के लिए पूरा दम लगाएगी । यही कारण है की इन नेताओं की मानसिक स्थिति यह हो गई है कि यहां पर गांधी परिवार ही लड़कर जीत जाएगा और 5 साल तक एक बार फिर उन्हें एसी रूम, एसी गाड़ी का सुख भोगने को मिल जाएगा और 5 साल तक गांधी परिवार के नाम पर राजनीति चमकने का अवसर भी प्रदान होगा। क्योंकि जिले के कांग्रेसियों में तो इतना दम नहीं बचा है कि वह खुद कह सके की रायबरेली में श्रीमती गांधी ने हर वर्ग का विकास किया है और उसी के दम पर जिले का ही नेता चुनाव लड़कर और जीतकर दिखाएगा। यही कारण है कि खुद कांग्रेसी नेताओ ने प्रियंका गांधी के रायबरेली से चुनाव लड़ने का प्रचार प्रचार करना शुरू कर दिया है। जबकि अभी तक राष्ट्रीय नेतृत्व में कोई भी दिशा निर्देश आधिकारिक तौर पर नहीं दिए हैं । फिर भी रायबरेली से प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हों गई है। कांग्रेसी नेताओं ने तो प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है जिसको लेकर कांग्रेस कार्यालय तिलक भवन में चहल कदमी बढ़ गई है।