आत्माराम त्रिपाठी की✍️ से—-
बांदा–आगामी लोकसभा चुनावों की रणभेरी बजते ही प्रत्येक प्रत्याशी के महारथियों ने विजय हासिल करने के लिए व्यूह रचना अभी से ही प्रारंम्भ कर दी है इनके सभी सेनापति अपने अपने मोर्चे संभाल मैदान में उतर गये हैं परंतु सेनापतियों ने जिन सेनानियों के भरोसे मैदान में मोर्चा संभाला है वही सेना संकोचवश कई कई जगह इन सेनापतियों के साथ नजर नहीं आ रही जिस कारण सेनापतियों के मैदान में उतर जाने के बाद भी सभी को इस “समर” में हार का भय अभी से सताने लगा है जिससे अब अपने लिए समर्थन नहीं मांग रहे तथा ना ही अपने द्वारा किए गए कार्यों का बखान कर रहे हैं बल्कि अब अपने “आकाओं” के नाम पर सबका समर्थन मांग रहे हैं तथा उन्ही के द्वारा किए गए कार्यों का गुणगान भी कर रहे हैं और करें भी क्यों ना क्योंकि इन्होंने स्वयं तो कहीं कुछ किया नहीं अरे करना तो दूर पांच वर्ष तक दिखाई तक नहीं दिए फिर भी आज उम्मीद कर रहे हैं कि यह सेना उसका साथ देगी जिसका ये हमेशा तिरस्कार अपमान करते चले आए हैं इसलिए आज यह कह पाना जरा मुश्किल हो रहा है कि बांदा चित्रकूट लोकसभा सीट के चुनाव में किसके पक्ष में जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता !दूसरी तरफ इनके कारनामों से आहत जनता रूपी सेना आज इन सेनापतियों के प्रति बिलकुल भी समर्पित नहीं है बल्कि ऊहापोह की स्थिति में है उन्हें शायद इस बात का मलाल है की पिछली गल्तियां दोहराना मतलब विकास तो छोड़िये राजनेता के दीदार से होना भी शायद टेढ़ी खीर है लोगों की इस सोच ने समूचे चुनाव को ही अंधकारमय बना रखा है जिससे साफ जाहिर होता है की आने वाले कल में लोगों की इस सोच से पता नहीं की “किस करवट बैठेगा ऊंट”!