भोपाल। मां दुर्गा मंदिर देवकी नगर करोंद भोपाल में आयोजित श्री शिव महापुराण की कथा के छठवें दिवस कथावाचक पंडित सुशील महाराज ने भोले शिव द्वारा इंद्र को जीवन दान एवं जालंधर उत्पत्ति एवं जालंधर वध की कथा सुनाई। एवं श्रोताओं को बताया कि असुर जालंधर की उत्पत्ति का प्रमुख कारण इंद्रदेव बने थे । महाराज श्री ने बताया कि एक समय देवगुरु बृहस्पति तथा इंद्र कैलाश पर शंकर जी के दर्शन करने गए। तव शंकर जी ने जटाधारी दिगंबर का रूप धारण करके उनकी परीक्षा ली। और और इन्द्र द्वारा पूछने पर कि भोले शिव कहां गए हैं इसकी जानकारी इंद्र को नहीं बताई। तब इंद्र ने दिगंबर रूप धारी शिव से क्रुद्ध होकर कहा कि मैं तुम्हें वज्र से मार दूंगा। और भोलै शिव को मारनै के लिए अपना वज्र उठा लिया । तभी भोले शिव ने भयंकर क्रोध करके इंद्र के वज्र का स्तंभित कर दिया । और इंद्र भोले शिव के क्रोध की अग्नि से जलने लगा । यह देखकर पास में खड़े बृहस्पति भगवान समझ गए की यह और कोई नहीं है भोले शिव ही हैं।
जब भोले शिव ने अपना क्रोध क्षीर सागर में छोड़ दिया । तब वहां एक बालक उत्पन्न हो गया । और वह गंगा सागर में बैठकर जोर-जोर से रोने लगा। उसके रुदन से सारे संसार में कोलाहल मच गया । और सारा जगत भययुक्त हो गया। तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए । और ब्रह्मा जी देवताओं के साथ क्षीरसागर के पास पहुंचे। और पूछा यह किसका बालक है। क्षीरसागर ने कहा यह तो नहीं मालूम किसका बालक है लेकिन जब से यह उत्पन्न हुआ है तब से चराचर जगत में आतंक फैल गया है।
जब वह बालक थोड़ा बड़ा हुआ और उसका उसका विवाह हो गयाऔर वह अपनी पत्नी वृंदा के साथ बैठा हुआ था । तभी भृगु ऋषि उसके पास आए तो उसने भृगु ऋषि से पूछा कि हमारे दादा राहु का सर किसने काटा था। तो भृगु ऋषि ने बताया कि इंद्र कै हिमायती श्रीविष्णु भगवान ने राहु का सर कटा था । तब जालंधर ने इंद्र के ऊपर आक्रमण कर दिया। और सभी देवताओं को परास्त किया। इसके बाद भोले शिव का जालंधर से युद्ध हुआ ।लंबे समय तक जब युद्ध का कोई निर्णय नहीं हुआ । तब श्री विष्णु भगवान ने जालंधर का रूप बनाकर के उसकी पत्नी वृंदा का पति व्रत भंग कर दिया। तब बृन्दा ने श्री विष्णु भगवान को पत्थर होने का श्राप दे दिया । और स्वयं आग में जलकर सती हो गई। तभी तीनों देवियां लक्ष्मी सरस्वती और पार्वती वहां पर बीज लेकर के आई और वृंदा कि राख पर देवताओं द्वारा उन विजों को डलवा दिया ।उन बिजों सै विधा, मालती, एवं तुलसी तिन पौधों की उत्पत्ति हुई। इस प्रकार से असुर जालंधर का अंत हुआ।