जनप्रतिनिधियों को न्यायालय पर भरोसा करना पड़ेगा

राज्य

 

संजय दुबे 

आज अरविंद केजरीवाल के जमानत के संबंध में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक बात पते की कही कि” कोई भी व्यक्ति न्यायालय के सामने केवल एक साधारण व्यक्ति के रूप में ही न्याय की उम्मीद कर सकता है और उसे न्यायालय पर भरोसा करना पड़ेगा।”
अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में दो बार चुनाव जीतने और2014में वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़े और हारने के बाद ये मुगालता हो चला था कि वे देश के इकलौते कट्टर ईमानदार है। पंजाब में सरकार बनाने के बाद उन्हें ये भी मुगालता हो चला था कि देर सबेर वे विपक्षी गठबंधन में अपनी बात मनवा सकते है।
इस घटनाक्रम में एक घटना ऐसी घटी जिससे ये बात हवा में उड़ने लगी कि भगत सिंह और भीम राव अंबेडकर की फोटो के सामने बैठकर बाते करने वाले अरविंद केजरीवाल का असली चेहरा कुछ और ही है। ये चेहरा राष्ट्रीय जांच एजेंसी के सामने जाने के लिए एक नही, दो नही, नौ समंस को अनदेखा कर ये बताने की कोशिश कर रहे थे कि वे देश के सबसे व्यस्ततम व्यक्ति है। सबसे बड़े केंद्र शासित प्रदेश रूपी राज्य के मुख्य मंत्री है।
दिल्ली का शराब घोटाला, अपने आप में जैसा भी घोटाला है उसका निर्णय होना शेष है । एक राज्य रूपी केंद्रशासित प्रदेश मुख्य मंत्री ,आबकारी मंत्री सहित राज्य सभा के सदस्य और न जाने कितने निर्वाचित जन प्रतिनिधि शामिल है इसका खुलासा होना स्वाभाविक है।
न्यायालय द्वारा चाहे वह निचली हो या ऊपरी,किसी मामले में जमानत देने से पहले कुछ मुख्य बातो पर ध्यान जरूर देती है। इनमे दो सबसे प्रमुख कारण होता है प्रकरण की गंभीरता और साक्ष्य को प्रभावित करना या नष्ट करने की कोशिश करना, यदि न्यायालय को भरोसा हो जाता है कि ऐसा नहीं होगा तो जमानत पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर सकती है। अरविंद केजरीवाल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत नहीं दी तो इसका सबसे बड़ा कारण अरविंद केजरीवाल का ये बताना है कि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री है और इस नाते प्रशासनिक कार्य सम्पादन के लिए उनको जमानत मिलना चाहिए।
देश की तीन स्तरीय न्यायालय के किसी भी न्यायालय में किसी भी मामले जांच एजेंसी द्वारा लाया गया व्यक्ति देश का एक साधारण व्यक्ति होता है। न तो उसका पद साथ में होता है न ही उसकी प्रतिष्ठा और न ही उसका रसूख साथ होता है। महात्मा गांधी, को राष्ट्रपिता माना गया लेकिन जब उनकी हत्या हुई तो इस मामले को राजद्रोह नही माना गया। एक साधारण व्यक्ति की हत्या के मामले का विचारण हुआ और न्यायालय ने निर्णय किया। अरविंद केजरीवाल इतनी बड़ी हैसियत नहीं रखते है कि खुद को न्यायालय से ऊपर मान ले, जैसा कि उनको वहम है। उनके अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत याचिका में हर मुद्दे को न्यायालय में प्रभावपूर्ण ढंग से निष्प्रभावी कर जमानत देने से इंकार कर दिया गया।
हर निर्वाचित जन प्रतिनिधि अपने राजनैतिक लाभ हानि को मद्देनजर रख कानून का दुरुपयोग करता है और जब उससे ऐसे कृत्यों के बारे में टिप्पणी करने के लिए कहा जाता है तब यही जनप्रतिनिधि न्यायिक उपचार की दुहाई देकर कहते है कि अगर आप बेकसूर है तो न्यायालय से प्रमाण पत्र ले आइए जब खुद पर गुजरती है तो हैकड़ी घुसड जाती है। संवैधानिक उपचार का हक सभी को है लेकिन अंतिम निर्णय न्यायालय का होता है। अरविंद केजरीवाल सहित हर जन प्रतिनिधि को अधिकार है कि याचिका पेश करे लेकिन खुद दूसरो के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हो। अरविंद केजरीवाल तमाशा कर कर के अपनी दोहरे चेहरे को सामने ला चुके है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *