निर्भीक पत्रकारों पर मंडरा रहा खतरा खौफ में जी रही कलमकारों की कलम

राज्य

 

आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

बांदा देश में उत्तर प्रदेश का वृहद महत्व है मौजूदा राजनीति ही सदियों से यह भारतीय संस्कृति का केंद्र रहा है। नहींजबकि भारत में जब किसी को दर दर भटकना पड़ता था पीड़ित परिवार हार थक जाता था तब वो अपनी बातों को मीडिया से साझा करता था और मीडिया प्रमुखता से उनकी बातों को शासन प्रशासन तक पहुंचा कर सवाल करता था और उस पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने में सहायक होता था।और मीडिया से अपराधी भ्रष्टाचारी भयभीत होकर कैमरे और कलम से बचना चाहते थे।देशवासियों से पत्रकारों को सम्मान मिलता था और पत्रकार अपनी कलम के ताकत से कुर्सी पर बैठे भ्रष्ट अधिकारी भ्रष्ट कर्मचारी को उतार कर नीचे बैठा देते थे।खतरा तब भी था लेकिन जब कोई पत्रकार अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मृत्यु को प्राप्त होता था तो उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाता था।पर आज कुछ चाटुकार कुछ दलाल कुछ अंधभक्तों ने मीडिया का दिशा में परिवर्तन ला दिया है। पत्रकारों की बंधक जैसी स्थिति है अधिकतर पत्रकार भी किसी न किसी राजनीतिक दल के सक्रिय कार्यकर्ता या गली कूचे वाले नेता है जिससे पत्रकारिता गर्त में चली गई है। पत्रकारों के साथ हिंसा, अपमान, फर्जी मुकदमे होना आम बात है। पत्रकारों पर क्रूरता का कारण उनमें एकता और आपसी संवाद ना होना भी एक बहुत बड़ा कारण है। जो पत्रकार वास्तविक पत्रकारिता से दूर है कथित पत्रकार तो आम लोगों से मिलना ही नहीं चाहते हैं वह सिर्फ अधिकारियों के पीछे घूमने को पत्रकारिता समझते हैं। आम आदमी तो हमेशा से वंचित, पीड़ित, शोषित रहा है। अगर किसी भी जिले के पत्रकार चाह ले तो पूरे जिले के भ्रष्ट जन विरोधी और आपराधिक मानसिकता से ग्रसित इन नौकरशाहों को रातों-रात सुधारा जा सकता है इनकी अकूत अवैध संपत्ति, नाजायज रिश्ते, अपराधिक कृत्यों और वीआईपी सिस्टम को उजागर किया जा सकता है। आज के दौर में पीड़ित परिवार की आवाज को दबा कर अपराधी भ्रष्टाचारी को बचाने लगे हैं।एल डी ए के कुछ भ्रष्ट अधिकारी के दहीना अंग बन कर अवैध निर्माण करवा कर बिल्डरों के खाश चेले बने हैं।थाना चौकी पर बैठ कर दलाली करने के लिए चौकी प्रभारी का पैर छू कर साबित कर रहें हैं कि हम पत्रकार नहीं आपके मुखबिर हैं।आर टी ओ से लेकर पी डब्लू डी नगर निगम जलकल विभाग यातायात स्वस्थ्य यहां तक शिक्षा पर भी चाटुकारों दलालों की अच्छी खासी पकड़ है।जिससे आम आदमी दर दर भटक रहा है न्याय की गुहार लगा रहा है कोई दबंग ज़मीन हड़प रहा है तो कोई गाड़ी सीज चालान के नाम पर लाखों की उसूली सड़कों पर कर रहा है कोई चौकी थानों पर पीड़ित को ही बैठा कर मुकदमा पंजीकृत करने की धमकी देकर लाखों का डिमांड कर रहा है तो कोई इलाज के नाम पर ग़रीब मजदूर वर्ग का जेब खाली कर रहा है तो कोई शिक्षा माफिया बन कर बच्चों के भविष्य को बर्बाद कर रहा है।तो कोई साफ सफाई के नाम पर करोड़ों डकार कर बैठा है।पर ये सब कुछ चाटुकार अंधभक्तों के चलते खुलासा नहीं हो पाता यदि कोई ईमानदार पत्रकार निष्पक्ष होकर पत्रकारिता करता है ऐसे तस्वीरें दिखाता है इन मुद्दों पर चर्चा करता है तो सबसे पहले चाटुकारों द्वारा थाने चौकी पर जा कर पैर छू कर बताया जाता है कि इस पर मुकदमा पंजीकृत करके डरा धमका कर इसके रास्ते को बदल दीजिए।बिल्डरों से कहा जाता है ऐसे पत्रकार ख़बर करने आये विडियो बनायें तुरंत हमला कर दीजिए स्थानीय पुलिस से मिल कर फर्ज़ी अवैध उसूली रंगदारी मांगने का आरोप लगा कर मुकदमा दर्ज करा दीजिए।ठीक इसी तरह सभी विभागों में चल रहा है और यही कारण है कि आज मीडिया सबसे कमजोर पिलर पर टिकी हुई है कब भर भरा कर गिर जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है। जबकि हाई कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी के बाद पीएम और सीएम का भी ऐलान आया है कि पत्रकारों से अभद्रता करने वालों पर एफआईआर दर्ज होगी,50 हजार का जुर्माना लगेगा, बदसलूकी करने पर 3 साल की जेल, पत्रकार को धमकाने वाले को 24 घंटे के अंदर जेल, पत्रकारों को धमकी के आरोप में गिरफ्तार लोगों को आसानी से जमानत नहीं मिलेगी, पत्रकारों से सूत्र पूछने का पुलिस को कोई अधिकार नहीं वगैरह-वगैरह। बावजूद उसके आज भी कलमकारों की कलम खौफ में जी रही है जिसकी खास वजह यह है कि ब्रिटिश हुकूमत के बाद आजाद भारत में अब फिर से नौकरशाह है प्रदेश के असली शासक।इस लेख के
लेखक निखिलेश कुमार मिश्रा वाराणसी उत्तर प्रदेश है जिसको उन्ही के भाषा शैली में उठाया गया है।

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