( भुक्त भोगी कार सेवक वरिष्ठ पत्रकार राजू उपाध्याय का संस्मरणात्मक लेख ✍️)
एटा। मदिर निर्माण और उसमे भव्य राम लला की भव्य विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा से सभी गर्वित और आह्लादित हैं। राम मंदिर निर्माण के संकल्प में एटा जिले की शानदार भागेदारी रही। 33 वर्ष पुरानी कोशिशों पर एटा के सकारात्मक सहयोग और संघर्ष की बात करें तो यह सब स्वर्णिम अक्षरों में लिखे जाने योग्य प्रतीत होता है। इन पंक्तियों का लेखक वरिष्ठ पत्रकार राजू उपाध्याय पत्रकारिता में तब भी प्रखर और मुखर लेखन करते रहे थे। उस वक्त सरकार के उग्र तेवर और प्रशासन के उत्पीड़नात्मक एक्शन को लेकर वह बताते हैं हमारे संपादित अखबार में समाचार खुल कर प्रकाशित किए जा रहे थे। यह कार्य एटा के रामलीला मढ़ी चौराहे पर सूचना साहित्य साप्ताहिक समाचार के माध्यम से किया जा रहा था। स्थानीय स्तर पर उक्त समाचार पत्र के तेवर को देखते हुए प्रशासन ने प्रेस पर दबाव बनाया इसी योजना तहत लगातार कई दिनों तक सी ओ धीरेंद्र सिंह यादव ने निगरानी बड़ा दी और रात में अचानक साइकिल चलाते हुए आया करते और आकर पूंछा करते आज अखबार में क्या छापोगे।आप लोग कार सेवा आंदोलन को सहयोग कर रहे है। इस बात पर उन्हें दो टूक कहा कि समाचारों को छपने से पहले उजागर नही किया जा सकता। जिस पर सीओ पुलिस ने धमकी दी तो आपका अखबार और प्रेस को बंद करा देंगे। प्रशासन की टेढ़ी नजर को समझते ही हम लोगों ने मुद्रण के सिस्टम को अन्य गुप्त स्थान पर स्थापित कर दिया। अगले दिन प्रेस स्थल में ताले डाल दिए गए और हम दो भाइयों को कोतवाली बुला कर अरेस्ट बता दिया। यद्यपि हमारी रणनीति से अखबार का प्रकाशन नियमित रहा अखबार के पृष्ठ गुप्त जगह से बनते और मौका लगते ही उन्हें छापा जाता । जेल में रहते हुए साप्ताहिक अखबार के कई अतिरिक्त बुलेटिन छाप कर प्रशासन के उत्पीड़न को सुखियों में रखा इस दौरान जेल के अंदर राम भक्तो के जोशे जुनून की रिपोर्टिंग की गई जिससे बाहर रह गए आंदोलन के पदाधिकारियों को खूब बल मिला। यह सब अनछुए पहलू और तथ्यों को इन पंक्तियों का भुक्त भोगी लेखक अब बदले गर्व भरे पलों में बेवाकियत से उस दौर के हालत को पेश करना अपना नैतिक राष्ट्रीय दायित्व बताते हुए साझा करते हुए कहते है। जब लाल कृष्ण आडवाणी के रथ यात्रा के शुरू होने से कार सेवा आंदोलन की स्क्रिप्ट लिख गई थी उनकी रथ यात्रा निर्धारित समय ३० अक्टूबर १९९० को अयोध्या पंहुचनी थी पर बिहार में लालू यादव के द्वारा उनकी गिरफ्तारी कराने के बाद हालात बदल गए या यूं कहे की राम के लिए आंदोलन कर रहे संगठनों को संजीवनी मिल गई फिर क्या था ३० अक्टूबर को कार सेवकों को अयोध्या पहुंचने का एलान कर दिया। जिस पर तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने किसी भी कीमत पर अयोध्या में कार सेवकों न पहुंचने देने के लिए सरकारी दमन नीति बना ली जिस पर आनन फानन में जिलों के पुलिस प्रशासन आंदोलन की हवा निकालने की कार्यवाही में जुट गया।
एटा में कार सेवकों हिंदू वादी संगठनों,कट्टर राम भक्तों एवं विहिप आर एस एस के नेताओ सहित उत्साही युवकों एवं समर्थित व्यापारियों की नगर मुहल्ला तहसील बार सूचियां बनाई गई जिसको अंतिम रूप सरकार समर्थित स्थानीय नेताओं की अंतिम सहमति ली गई। बहुत कम लोगों को पता होगा सबसे पहली गिरफ्तारी एटा के प्रख्यात युवा तुर्क कार सेवा आंदोलन के प्रबल समर्थक डा वीरेंद्र पांडेय (जो वर्तमान में अमेरिका में रह रहे हैं) को आधी रात के बाद अवागढ़ हाउस स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया। अमेरिका के बहमास सिटी में रह रहे डा वीरेंद्र पांडेय ने भारत में राम मंदिर निर्माण ऐतिहासिक अवसर पर एक संदेश के जरिए स्वीकार किया कि उनकी बस स्टैंड के सामने कार सेवा आंदोलन को लेकर श्री विनय कटियार के साथ मीटिंग हुई थी। उसके अगले दिन मुझे गिरफतार कर लिया गया वह कहते हैं कि उस स्मॉल गिलहरी प्रयास की आहुति को अनुभव कर इस वक्त मैं गर्व महसूस कर रहा हूं इस आंदोलन में मेरी भूमिका को याद रखा। इसके लिए सबको आभार व्यक्त करता हूं।पंक्तियों के लेखक पत्रकार उपाध्याय कहते हैं इसके बाद शहर में अनेक व्यापारियों आंदोलन से जुड़े नेताओ को उठा कर जेल में डाल दिया गया। इस मौके पर अफसरों और तत्कालीन सरकार परस्त स्थानीय नेताओं ने गिव एंड टेक कराकर कर अरेस्टिंग के डर को खूब भुना कर धनार्जन किया।
पत्रकारिता से जुड़े और इस पेशे में सक्रिय रहने के कारण हमे(इन पंक्तियों के लेखक) यह बिलकुल आभास नहीं था प्रशासन की टारगेट सूची में हम या हमारे परिवारिजन हो सकते है। यहां यह उजागर करना समीचीन लगता है उस वक्त कार सेवकों के दमन नीति के प्रशासनिक रणनीतिकार तत्कालीन आई ए एस ट्रेनीज एस डी एम नवनीत सहगल ( जो प्रमुख सचिव पद से सेवा निवृत है)तत्कालीन सी ओ धीरेंद्र सिंह यादव डी एम जे पी शर्मा पूरा अमला था जो स्थानीय राजनीति का पिट्ठू बन कर काम कर रहा था । कार सेवक आंदोलन करियों में ये प्रशासनिक समूह विलेन के रूप में चर्चित था। इन पंक्तियों का लेखक राजनीति और प्रशासन की इस जुगलबंदी को खुलेआम पत्रकारिता से उजागर कर रहा था। इस नजरिए से मुलायम सरकार के यह अफसर टारगेट बना चुके थे परिणाम स्वरूप बात करने के बहाने बुला कर हमे और बड़े भाई सत्येंद्र स्वप्नेश को बैठाए बिठाए गिरफ्तार घोषित कर दिया। छोटे भाई संजय उपाध्याय को अस्थाई जेल भेज दिया। ३० अक्टूबर को गिरफतार कर ३१ को को जिला कारागार भेज दिया। यहां यह भी बता दे उस वक्त तत्कालीन सरकार की सोची समझी नीति थी की अग्रणी कारसेवको को लंबे समय तक जेल में रखना है।इस लिए स्थानीय अदालतें जमानत अर्जियां खारिज कर रही थी दूसरी तरफ पुलिस राष्टीय सुरक्षा कानून आदि के गंभीर मामले दर्ज करने लगी। परिणाम स्वरूप कार सेवा आंदोलन का स्वरूप जेल भरो आंदोलन के रूप में बदल गया। परिणाम स्वरूप स्वत स्फूर्त गिरफातारियो के लिए लोग समूह में आने लगे।
परिणाम स्वरूप जिला जेल के अतिरिक्त अस्थाई जेल स्कूलों में बनाई गई।जिनमे कुछ दिनों के लिए रखा।
इन स्थितियों के बीच प्रशासन इस लेखक और उसके भाई को जेल में अपराधी श्रेणी के बैरक में रख कर कार सेवा आंदोलन करियों से अलग थलग कर दिया। उधर मथुरा के हाई प्रोफाइल हिंदू वादी संघ के पदाधिकारी एवं नेतागण एटा जेल में आ गए जिन्होंने पूरे जेल के माहौल को राम मय कर दिया जेल की दीवारों पर मंदिर आंदोलन से संबंधित नारे लिखे गए खुले आम जय घोष किए गए। प्रशासनिक निर्देश पर जेल प्रशासन को दोहरा रवैया हम लोगों के खिलाफ अच्छा नहीं लगा फल स्वरूप हम ने भूख हड़ताल जेल में रह कर शुरू कर दी जिसकी तत्कालीन मीडिया ने खूब फोकस किया (उक्त भूख हड़ताल की तस्वीर मीडिया बंधु ने उस समय क्लिक की जिसे इस आलेख के साथ साझा कर रहे हैं) यहां यह बताना समीचीन है कि उक्त कार सेवा आंदोलन की आड़ में हम लोगो की निष्पक्ष रिपोर्टिंग से कुपित होकर तत्कालीन प्रशासन ने यह उत्पीड़नात्मक रवैया अख्तियार किया था। जिसे रिहा होने और मुकद्दमे सरकार द्वारा वापिस लिए जाने के बाद पूरे मामले को प्रेस कॉन्सिल आफ इंडिया के समक्ष रखा जिस पर रघुवीर सहाय की अध्यक्षता में उप समिति ने आगरा सर्किट हाउस में कई जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों को तलब किया जिसकी प्रबल पैरोकारी दैनिक आज के तत्कालीन प्रधान संपादक शशि शेखर जी ने आगरा सहित एटा के हम पत्रकारों का पक्ष जोरदारी से रखा। इधर मथुरा के विहिप पदाधिकारी बड़े नेताओं के समर्थन मिला जिसमे रविकांत गर्ग,राम प्रसाद कमल,अजय पोइया, प्रणत पाल सिंह सिडपुरा के चेयरमैन शकर लाल गुप्ता आदि दर्जनों लोगों ने साथ दिया इधर स्थानीय विहिप पदाधिकारी जिनमे प्रमुख रूप से बड़े भाई नारायण भास्कर सहित भूख हड़ताल में अपरमित सहयोग किया।
भूख हड़ताल की खबर बाहर सुर्खियों रहने के बाद जेल प्रशासन ने सामाजिक कार्यकर्ताओं से संपर्क कर कार सेवक बंदियों के साथ रखने सम्मान जनक अनुमति दी इस कार्य की मध्यस्थता वयोवृद्ध पत्रकार सोमदेव पद्मेश,अरुण दीक्षित, वी के सिंह यादव सुभाष शर्मा एडवोकेट, दैनिक जागरण ब्यूरो गजेंद्र सिंह राठौर( जिनकी ४ दिसंबर १९९० में दंगाइयों ने हत्या कर दी)आदि ने की । १८ दिन की जेल यात्रा के दौरान राम मंदिर आंदोलन का जहां पूरा ककहरा समझने में मदद मिली वही अनेक विद्वानों से संपर्क हुआ। तैतीस साल पहले राम मंदिर का संकल्प आज जब पूरा होता दिख रहा है तो लगता है कहीं न कही छोटे बड़े रूप में सहयोग की आहुति हमारी भी है यह विचार ह्रदय और आत्मा को गदगद और आह्लादित करता है। सदियों से जन मानस का सामूहिक संकल्प पूरा होते हुए खुली आखों के सामने प्रति फलित हुआ है जो भव्य राम मंदिर में श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में भारत की सुद्रण सनातन शक्ति का प्रतीक के रूप में अभिव्यक्त होता है।