सब खोद डालिये पर देश को बचा लीजिए

राज्य

 

    आलेख   :     डॉ0 ओम प्रकाश मिश्र

आज हम बात करेंगे लेकिन आज हम बात नहीं बल्कि अपील करेंगे, अनुरोध करेंगे, प्रार्थना करेंगे, निवेदन करेंगे ।
और यह सब किससे करेंगे तो भारत की राष्ट्रपति से करेंगे, भारत के प्रधानमंत्री से करेंगे, राज्यों के मुख्यमंत्रीयो से करेंगे, लोकसभा तथा राज्यसभा में नेता विरोधी दल से करेंगे, भारत के मुख्य न्यायाधीश से करेंगे तथा सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों से करेंगे।
इतना ही नहीं संघ प्रमुख से भी करेंगे और तमाम धार्मिक नेताओं मीडिया के बांधुओ तथा प्रभुत्वजनों से भी करेंगे और उनसे कहेंगे कि देश को बचा लीजिए। चाहे भारत कहिए, चाहे हिंदुस्तान कहिए तथा चाहे इंडिया कहिए लेकिन देश को सांप्रदायिकता की आग से धार्मिक कट्टरता की आग से बचा लीजिए। क्योंकि हमारा और आपका अस्तित्व तभी तक है जब तक देश है, देशवासी हैं और राष्ट्र है।
मणिपुर एक छोटा सा राज्य है वह एक लंबे समय से जल रहा है लेकिन उसकी लपटे अभी हम तक नहीं पहुंची है। लेकिन अगर अन्य राज्य धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, वर्ग के नाम पर, भाषा के नाम पर, हिंदू मुस्लिम के नाम पर , अगडा पिछड़ा के नाम पर , दलित और आदिवासियों के नाम पर जलने लगे तो क्या होगा ? तब क्या हमारा देश बच पाएगा।
देश की 140 करोड़ जनता बच पाएगी? शायद नहीं। अब जिस तरह हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश की जा रही है क्या यह उचित है?शायद नहीं । संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा था कि प्रत्येक मस्जिद में शिवलिंग तलाशना बंद होना चाहिए। लेकिन उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ । उल्टे मस्जिद में शिवलिंग तलाशने का काम और तेज कर दिया गया। संभल की जामा मस्जिद में तलाशा गया जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई। इससे पहले बहराइच में भी तलाशा गया था यानी एक मुस्लिम घर की छत पर लगे हरे झंडे को उतार कर भगवा झंडा लगाने की कोशिश में एक की मौत हुई।
मैं बहराइच तथा संभल की भरथरी में जाकर रामगोपाल मिश्रा तथा मोहम्मद जावेद के जिस्म से बहते हुए खून में फर्क तलाशने की बहुत कोशिश की माइक्रोस्कोप का भी इस्तेमाल किया लेकिन कोई अंतर नहीं ढूंढ पाया। जानते हैं क्यों? क्योंकि दोनों के जिस्म से निकलते हुए खून की रंगत एक ही थी। अब अजमेर की दरगाह में मंदिर तलाशा जा रहा है, उत्तराखंड के उत्तरकाशी की मस्जिद में मंदिर तलाशा जा रहा है, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद में भी मंदिर तलाशने की प्रक्रिया चल रही है। लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान चुप्पी साधे हुए हैं। इसे अगर हम दूसरे शब्दों में कहें तो खामोशी या चुप्पी का मतलब मौन स्वीकृति ही होती है। वैसे सरकार को अथवा सरकार द्वारा पोषित या संरक्षित संगठनों को यह बताना चाहिए कि यह सब कुछ कब तक चलेगा? कब तक मस्जिदों में शिवलिंग तालाशे जाएंगे और अंत में यह सिलसिला कब रुकेगा? रुकेगा भी या नहीं रुकेगा? सत्ता के लिए यह खेल कब तक चलेगा? सत्ता के लिए कोठारी बंधु रामगोपाल मिश्रा तथा मोहम्मद जावेद जैसे नौजवानों कब तक मारे जाते रहेंगे। और इन मरने वालों या मारने वाला को मिलेगा क्या? क्या इन्हें सत्ता मिलेगी या उनकी जान की कीमत केवल दस पांच लाख रुपये ही होगी। मैं जानता और मानता हूं कि संघ के एजेंडे में भाजपा के एजेंडे में शुरू से ही अयोध्या, मथुरा और काशी था। लेकिन यह दायरा अब बढ़ता जा रहा है । यह बढ़ता दायरा तथा इससे निकलने वाली आग कितने हिंदुओं और मुसलमान को जलाएगी। कुछ पता नहीं। यह कब थमेगा कुछ पता नहीं। जलता हुआ मणिपुर रह रहकर धधक उठना है। लेकिन उसे बुझाने की किसी को कोई चिंता नहीं। अब अगर इसी तरह अन्य राज्यों में भी धार्मिक कट्टरता की आग, सांप्रदायिकता की आग तथा ध्रुवीकरण की आग आहिस्ता आहिस्ता जलने लगी तो क्या होगा? क्या सत्तारूढ दल को इसका अंदाजा है? क्या राजनीतिक ध्रुवीकरण करने को लालायित राजनीतिक दलों को इसका अंदाजा है? शायद होगा। और यह भी हो सकता है कि इससे उनके स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ने वाला। क्योंकि इस आग में उनका अपना तो कोई जलने वाला है नहीं। वह तो कहीं दूर विदेश में तराशा जा रहा है। ताकि समय आने पर उसको सत्ता दी जा सके। मरने के लिए , घुटने के लिए, जलने के लिए, अपमानित होने के लिए तो हम हैं ही। देश में तमाम रामगोपाल मिश्रा और मोहम्मद जावेद हैं जिनको जब जरूरत होगी तब मारा जाएगा और लोग तमाशा देखेंगे , रील बनाएंगे और फिर अगले हफ्ते सब भूल जाएंगे। मान्यवर। महोदय । मेरे आकाओ मुझे अपनी चिंता नहीं है, अपने जैसों की चिंता नहीं है क्योंकि हम लोग तो बोनस में चल रहे हैं। हमको हमारे बेटों और बेटियों की भी चिंता नहीं है क्योंकि वह भी सेटल हैं। श्रीमान जी हमें चिंता अपने पोते और पोतिया की है कि उनका क्या होगा? 80 बनाम 20 में वे खड़े कहां होंगे? उनका जीवन कैसे चलेगा? उनका भविष्य क्या होगा? क्योंकि शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, बेरोजगारी, नौकरी तो शायद आप सबके एजेंडे में है ही नहीं। आपके एजेंडे में तो केवल रेवड़िया है। जिसे आप चुनाव के समय बांटने की घोषणा करते हैं। और हमारे जैसे जाहिल कथित धर्म और राष्ट्रभक्त चटकारे लेकर उन रेवडियों को खाते हैं और भारत माता की जय का नारा लगाते हैं।
महोदय। मैं यह नहीं कहता कि आप औद्योगिक घरानों का कर्ज माफ ना करें बिल्कुल करें। क्योंकि यह आपका कर्तव्य है। और उनका अधिकार है । आखिर हम लोग कमाते भी तो इसलिए हैं ताकि बड़ों का कल्याण हो सके और हमारा ट्रैक्टर नीलाम हो सके। आप बड़े लोगों के लिए सब कुछ कीजिए लेकिन हमारे लिए भ्रष्टाचार मुक्त समाज का निर्माण कर दीजिए, हमारे लिए स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, रोजगार तथा नौकरी और व्यापार करने में रियायत दे दीजिए। हमें जाति-पात में बांटना छोड़ दीजिए। हम पर फूल बरसाना बंद करके हमारे लिए रोजगार के अवसर प्रदान कर दीजिए हम आपसे वायदा करते हैं कि हम एक रहेंगे लेकिन हमें सेफ रहने दीजिए। हम आपसे यह भी वायदा करते हैं कि हम बटेंगे नहीं लेकिन हम कटे नहीं इसलिए व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से ज्ञान परोशना बंद करवा दीजिए। हम कागज दिखाने, जाति बताने, धर्म बताने के लिए तैयार है लेकिन हमारा सार्वजनिक अपमान करना और करवाना बंद कर दीजिए।
मान्यवर। हम भी भारत के नागरिक हैं, हमारी पूजा पद्धति भले अलग है लेकिन हम हिंदू मुस्लिम, सिख इसाई आपस में सब भाई-भाई का नारा लगाने वाले हैं। हमे भारत पर गर्व है, इंडिया पर गर्व है, भारत माता पर गर्व है तभी तो हम कहते हैं कि सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा। लेकिन इस पर गर्व को बराये मेहरबानी बरकरार रहने दीजिए।
और इस बात का खुले मन से प्रयास करते रहिए की जहां तक हो सके एक्शन ना हो वरना रिएक्शन होने की संभावना बनी रहती है। कहीं अगर हम बहुसंख्यक हैं तो कहीं अल्पसंख्यक भी हम हैं।

 

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