संजय दुबे
हर माता§ पिता चाहते है कि उनकी संतान प्रतिभाशाली हो। संतान के अच्छे कर्मों से माता पिता की पहचान हो। संतान के भविष्य को बनाने के लिए कितने समझौते करने पड़ते है ये केवल माता पिता समझते है।
आजकल की दुनियां में छोटे परिवार का चलन है। खासकर शिक्षित परिवार में, कम से कम एक और ज्यादा से ज्यादा दो, इससे अधिक की कल्पना बहुत कम अभिभावक करते है क्योंकि शिक्षा भी खर्चीली हो चली है। एक बच्चे की अगर तकनीकी शिक्षा में सफल बनाना है और प्रतिस्पर्धा में सफलता नहीं मिली तो आपके जेब में पचास लाख की राशि होनी चाहिए।
अनेक बच्चे ऐसे होते है जिनके जीवन का लक्ष्य परंपरागत शिक्षा से परे होता है। खेल की दुनियां, सबसे जोखिम की दुनियां है।एक करोड़ में एक बच्चा सफल होता है बाकी सफल नहीं हो पाते है इसकी कारण “पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे होगे खराब”कहावत अमूमन हर परिवार बोलता बताता जरूर है।
आज मैं एक ऐसे मां की सच्ची बात बताने जा रहा हूं जिन्होंने अव्वल बेटे बेटी में कोई फर्क नहीं किया बल्कि बेटे की तुलना में बेटी के लिए ज्यादा समर्पित रही। खेल जगत में लड़कियों के आने पर उनकी सुरक्षा और देखभाल की जरूरत ज्यादा पड़ती है इससे कोई इंकार नहीं है। पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पदक जीतने की शुरुवात करने वाली मनु भाकर की मां सुमेधा भाकर ने पहली बार कुछ कहा है जबकि मनु भाकर की सफलता की शुरुवात सात साल पहले हो चुकी थी। अंतराष्ट्रीय जूनियर, सीनियर स्पर्धाओं में मनु की सफलता अचंभित करने वाली है। मनु की मां अपनी बेटी की सफलता से अहंकारी भी हो सकती थी। परिवार, समाज, राज्य देश में सार्वजनिक जीवन जी सकती थी लेकिन वे बेटी का संबल बनी,सहयोगी बनी, सखी बनी और जहां जहां मनु प्रशिक्षण के लिए गई सुरक्षा कवच बन कर रही। सुमेधा भाकर का लक्ष्य था कि बेटी देश का नाम ओलंपिक खेलों में रोशन करे। ये ख्वाब भी हकीकत में बदल चुका है। उन्होंने जो बात कही वह बात हर बेटी की मां के लिए मायने रखता है कि बेटे भाग्य से मिलते है और बेटियां सौभाग्य से मिलती है। सचमुच बेटियां सौभाग्य से ही मिला करती है। मनु का सौभाग्य भी कम नहीं है वे सिर्फ बाइस साल की है। शूटिंग से जुड़ी है। शूटिंग ऐसी स्पर्धा है जिसमे दीगर खेलो के समान शारीरिक क्षमता से अधिक मानसिक नियंत्रण की जरूरत होती है। इसके लिए मनु भाकर गीता पढ़कर पदक जीत सकती है। ये संस्कार भी घर से मिला हुआ संस्कार है।जिसके लिए उनके पिता राम किशन भाकर सहित मां सुमेधा भाकर बधाई के पात्र है। 27जुलाई से देश विदेश में मनु, ही मनु है। 1928सेभारत ओलम्पिक खेलों में भाग ले रहा है किसी भी महिला ने पदक पर निशाना नही लगाया था, मनु ने ये उपलब्धि हासिल की।