सुहागिनों ने व्रत रखकर की अखंड सौभाग्य की कामना

राज्य

शिव शर्मा की रिपोर्ट

छुईखदान — ज्येष्ठ की भीषण गर्मी में चिलचिलाती धूप के बीच सुहागिनें नंगे पैर पूजा की डलिया लिए मंदिर और बरगद के पेड़ों तक पहुंचीं और विधि विधान से पूजन अर्चना की।ज्येष्ठ महीने की अमावस्या पर गुरुवार को सुहागिनों ने अपने पति के दीर्घायु की कामना के साथ वट सावित्री का व्रत रखा। सुहागिन महिलाओं ने पूजन सामग्री लेकर वट सावित्री का पूजन अनुष्ठान विधि विधान कर पति की लंबी आयु के लिए कामना की। शहर से लेकर गांव तक तमाम देवालयों तथा बरगद के पेड़ के पास सुहागिन महिलाओं एवं बच्चों की भीड़ देखने को मिली।

*वट वृक्ष का किया पूजन*

शहर के काली मंदिर, राजा तालाब के पास शिव मंदिर, बाजार लाईन, भाटापारा, श्यामपुर , टिकरीपारा, समेत कई स्थानों पर वट वृक्ष के नीचे सुहागिनों ने पूजन किया। सुहागिन महिलाओं ने निर्जला व्रत के साथ पूजन सामग्री में सिंदूर, रोली, फूल, धूप, दीप, अक्षत, कुमकुम, रक्षा सूत्र, मिठाई, चना, फल, दूध, बांस के पंखे, नये वस्त्र के साथ विधि विधान से वटवृक्ष की पूजा अर्चना की।

सावित्री-सत्यवान और यमराज के कथा का श्रवण किया। इसके बाद हल्दी में रंगे रक्षा सूत्र के रूप में कच्चे धागे लेकर बरगद की सात बार परिक्रमा की और पेड़ में धागे को लपेटते हुए हर परिक्रमा में वृक्ष के जड़ में एक चना चढ़ाया। इस दौरान वट वृक्ष की जड़ में दूध और जल भी चढ़ाया।

*यह है मान्यता*

हिंदू धर्म के अनुसार मान्यता है कि सावित्री के पति सत्यवान को वट वृक्ष के नीचे ही यमराज ने जीवनदान दिया था। उस दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या थाी। इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा। सनातन संस्कृति में यह भी माना जाता है कि वट में ब्रह्म, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास है।इसलिए इस वृक्ष की पूजा से सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती है. इस व्रत के प्रभाव से व्रती महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. अखंड सुहाग की कामना के लिए मनाए जाने वाले व्रत को लेकर सुहागिनों में काफी उत्साह देखा गया.

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