चंद्र प्रकाश द्विवेदी की कलम से
ककरबई-झांसी जहां बहुतायत संख्या में लोगों द्वारा अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम जी की जयंती के रुप में मनाया जाता हैं। वहीं खासकर बुन्देलखण्ड क्षेत्र में अक्षय तृतीया मुख्य रूप से अक्ती के नाम से मशहूर है। सनातन मान्यता के अनुसार जहां इस त्योहार को नववर्ष के प्रथम त्योहार के रुप में मनाया जाता है। वहीं आज से ही किसान आने वाले बर्ष के लिए कृषि कार्य का प्रारम्भ करते हैं। अक्ती के दिन सूर्योदय के पूर्व किसानों द्वारा अपने खेतों पर पहुंचकर आने वाले बर्ष में अच्छी पैदावार लेने के लिए पूजन करते हुए मिट्टी को घर लाया जाता है। इसे बुन्देली भाषा में हरायता कहते हैं। घर आने पर पहली बार प्रयोग में लेने वाले मिट्टी के चार घड़ों में पानी भरकर चने के दानों को रखकर बरसात के चारों महिनों के नाम लिखते हुए वट के पत्ते व कच्चे आम के फलों का पूजन करने के उपरांत रात-भर के लिए रख दिये जाते हैं। दूसरे दिन सुबह जिस माह के घड़े के चने अच्छी तरह से अंकुरित होते हैं। उन महिनों में अच्छी बर्षा होने का सगुन माना जाता है। अक्ती के दिन ही कन्याओं द्वारा शाम को बट पूजन कर अखंड सौभाग्य की कामना की जाती है।