संजय दुबे
अगर हम विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो मादा मच्छरों के खिलाफ सालो से चल रही जंग के बावजूद वर्ष 2022में छः लाख लोगो की जान मादा एनोफ्लीज मच्छरों के काटने से दुनियां भर में हुई है। अफ्रीका महाद्वीप इस मामले में अभी भी सबसे ज्यादा प्रभावित देश है। 106देशों में मादा मच्छर अपना प्रकोप फैलाई हुई है। मलेरिया जैसी बीमारी पर विकासशील देशों का कम नियंत्रण होना ये तय करता है कि स्वास्थ्य के प्रति सजगता की जरूरत है।
मच्छरों की उत्पादन संख्या को कम करने की पहली शर्त यही है कि पानी किसी भी स्थिति में स्थिर न रहे। देश में शहरीकरण का जोर है। ग्राम पंचायतों को जोड़ कर नगर पंचायत, नगर पंचायत में गावों को जोड़कर नगर पालिका, और नगर पालिका में गांव जोड़कर नगर निगम बनाने की होड़ में शहरीकरण हो रहा है। इस प्रक्रिया में नाली बने बगैर मकान बन रहे है गंदे पानी के निकासी का व्वस्थापन नही है। अवैध कब्जो के चलते झुग्गी बस्तियों का फैलाव हो रहा है ।परिणाम ये है कि मच्छरों को पनपने का आदर्श वातावरण बनते जा रहा है।
अव्यवस्थित शहरीकरण और नगरीय निकायों के गैर जिम्मेदाराना आचरण के चलते मच्छरों के लिए व्यवस्था हो रही है।
एक मलेरिया विभाग हुआ करता था जो डीडीटी पाउडर डालने का काम किया करता था, आजकल इस काम को नगरीय निकायों ने ले लिया है। डीटीटी पाउडर का असर अब
मच्छरों पर नही होता है। कुछ समय पहले शहर भर के मच्छरों को भगाने के लिए फॉगिंग मशीन का आगमन हुआ। कुछ जन प्रतिनिधि पीठ पर छिड़काव मशीन के कर भी घूमे। जनप्रतिनिधि चले गए,हार गए लेकिन मच्छरों से निजात नहीं दिला पाए।
सार्वजनिक उपचार से परे लोगो ने पहले नीम की पत्ती जलाई, क्वाइल जला कर धुवां किया(मच्छरों को भगाने के कछुआ छाप?) इलेक्ट्रिक मशीन में लिक्विड लाए गए। इलेक्ट्रिक से चार्ज होने वाले रैकेट आए। ओडोमास आया।इनसे सम्पूर्ण निजात नहीं मिल सकी तो मच्छरदानी सबसे बढ़िया विकल्प बचा हुआ है लेकिन मलेरिया होने की गुंजाइश कभी भी खत्म नहीं हो पा रही है। आप अंदाजा लगा सकते है कि जब शहर में ये हाल है तो ढाई लाख ग्राम पंचायतों में क्या हाल होगा। आज विश्व मलेरिया दिवस है। दिवस विशेष सजगता के लिए निर्धारित है। आप स्वयं आंकलन करिएगा कि मादा एनोफ्लीज मच्छर से बचने के लिए हर महीने कितनी राशि खर्च करते है ।