माननीय न्यायालय के निर्देशानुसार धान के अवशेष जलाना प्रतिबंधित

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 सनत बुधौलिया के साथ हरिश्चंद्र तिवारी लौना

उरई ।         उप कृषि निदेशक एस०के०उत्तम ने बताया कि शासन के आदेशों के क्रम में जनपद के किसान भाईयों से अनुरोध है कि वे  धन की कटाई  के बाद खेत  में डली पराली तथा अन्य फसल अवशेषों को  आग से  न जलाऐं। क्योंकि यह प्रकृति चक्र में बाधक क्रिया है जिससे आपके जमीन की उर्वरता नष्ट होती है इससे दीर्घ काल तक सतत रूप से कृषि करना असंभव हो जाएगा। आप फसल अवशेष जलाकर धरती माता को प्राकृतिक रूप से मिलने वाले पोषण अर्थात कार्बन अंश से वंचित कर दे रहे हैं। जिससे आपके खेत अनुपजाऊ व बंजर हो जाएंगे जो आने वाली पीढ़ी हेतु बंजर/अनुपजाऊ भूमि ही शेष बचेगी। वातावरण में प्रदूषण के कारण विभिन्न बीमारियां, स्वांस सम्बन्धी रोग हो रहे हैं तथा ठंडे मौसम की शुरूआत में कोहरे के साथ धुओं के संयोग से उत्पन्न धुंध से बहुतायत में वाहन दुर्घटनाऐं व जन हानि भी होती है। फसल अवशेष जलाना मानवता के प्रति अन्याय है। अतः खेत में पराली व अन्य अवशेषों का प्रबन्धन करें। मशीनों का प्रयोग कर उसे मिट्टी में पलट दें अथवा डी कम्पोजर का प्रयोग कर खेत में ही सड़ा दें। जिससे आपकी जमीन की उत्पादकता बढ़े व खाद के लिये आपको कम खर्च करना पड़े। वर्तमान में मृदा में औसतन 0.2 कार्बन रेसियो (हयूमस) शेष बचा है। जबकि उर्वरा भूमि में 0.9 कार्बन रेसियो होना चाहिये।

मा० सर्वोच्च न्यायालय तथा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के निर्देशों के क्रम में फसल अवशेष जलाना प्रतिबन्धित है। जिसमें आयोग अधिनियम के उपबंधों के अनुसार निम्नलिखित दरों पर पराली जलाने वाले कृषकों पर पर्यावरणीय प्रतिकर अधिरोपित और संगृहीत / जुर्माना किया जायेगा। उन्होंने बताया कि 2 एकड़ तक 5000.00 रू० प्रति घटना के लिये, 2 से 5 एकड तक 10000.00 रु० प्रति घटना के लिये, 5 एकड़ से अधिक भूमि वाले कृषक पर 30000.00 रू0 प्रति घटना के लिये।
अतः अपील है कि सभी किसान भाई पर्यावरण की सुरक्षा करें, अपने खेतों की उर्वरता सुरक्षित रखें।
“फसल अवशेष में आग लगाकर मिट्टी की सेहत पोषक तत्वों, सूक्ष्म जीवों के साथ ही अपनी आने वाली पीढ़ी का भविष्य खराब न करें। साथ ही अपने स्वास्थ्य को क्षति न पहुंचायें।”

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