विनम्रता ही धर्म व सत्य मार्ग पर ले जाती है : ब्रह्मचारी

राज्य

 

पंचनद न्यूज से विजय द्विवेदी

जगम्मनपुर, जालौन।जहां विनम्रता होती है वहां धर्म होता है। जहां धर्म पर चोट होती है वहां संकट छा जाता है।
जगम्मनपुर के पास ग्राम लिडऊपुर में श्रीमदभागवत ज्ञान यज्ञ के विश्राम दिवस पर जनपद जालौन के प्रसिद्ध कथा वक्ता अरविंद बृम्हचारी ने अपार जन समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि जहां धर्म है, वहां सब कुछ ठीक है, ऐसी आस्था प्राय: सभी के मन में होती है। यह भी माना जाता है कि जब-जब धर्म पर संकट होता है तब-तब न केवल अधर्म का बोलबाला होता है अपितु व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की अस्मिता पर भी संकट खड़ा होता है। इसलिए गीता में कृष्ण कहते हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ता है, पापियों एवं अधर्मियों के विनाश के लिए मुझे संसार में आना पड़ता है। कृष्ण यह भी कहते हैं कि धर्म महान है किन्तु धर्म की ओर चरणन्यास का आधार जो है, वह विनय है अर्थात् विनय वह सदगुण है जो व्यक्ति को धर्म के मार्ग पर ले जाता है। विनय की शक्ति से व्यक्ति हर समय स्वस्थ एवं तत्पर रहता है। आलस्य या प्रमाद से वह कोसों दूर रहता है। शारीरिक एवं मानसिक रूग्णता भी विनय के कारण दूरी बनाए रखती है, क्योंकि विनय से धर्म की ओर गति होती है इसीलिए विनय को गुणों का भूषण कहा गया है।
आचार्य अरविंद बृम्हचारी ने कहा कि जिसका व्यक्तित्व सरल, उसका स्वभाव तरल होता है।
विनय आत्मा का स्वभाव है, विभाव नहीं। स्वभाव सहज होता है और स्थाई होता है। विभाव तो आते-जाते रहते हैं। यह बात अलग है कि विभाव उस बादल की तरह है जो सूर्य को ढक लेता है किन्तु जैसे बादल सूर्य के अस्तित्व को हानि नहीं पहुंचा सकता वैसे ही आत्मा का विभाव भी कभी आत्मा के धर्म विनय को समाप्त नहीं कर सकता है। क्रूरता के कारण कुछ क्षण के लिए विनय आवृत भले हो जाए लेकिन कभी इसके स्वरूप की हानि नहीं हो सकती। भागवत में सूतजी कहते है कि विनय से बड़ा धर्म नहीं है क्योंकि विनय सबको झुकना सिखाता है। जैसे फलों से लदे वृक्ष स्वत: झुक जाते हैं । जो जितना सहज होगा उतना ही आगे बढ़ता जाएगा।
महाभारत के युद्ध में अधर्मी दुर्योधन की मृत्यु होने के बाद जब कृष्ण कहते हैं कि युधिष्ठिर हस्तिनापुर में प्रवेश करो और राज्य का सुख भोगो, तब विनयी युधिष्ठिर के मुख से यही शब्द निकला कि अपनों को खोकर पाए राज्य का कैसा सुख? विनय हर परिस्थिति में सम करना सिखाता है । श्रम करने वाला कभी आलसी नहीं हो सकता। वह सदैव जागरूक एवं सावधान रहता है।
बृह्मचारी जी ने बताया कि अहंकार को जीवन के लिए अभिशाप माना गया है। रावण जैसे विद्वान एवं प्रतापी राजा का पतन यदि किसी कारण से हुआ तो वह अहंकार ही था। यह अहंकार का ही दुष्परिणाम था। अहंकार के मद में चूर दुर्योधन की भी भाइयों के राज्य को हड़पने की कोशिश की और अहंकार के वशीभूत होकर आधे राज्य को देने की बात तो दूर सूई की नोक के बराबर जमीन नहीं दूंगा, ऐसा कहने वाले दुर्योधन का भी वही हाल हुआ जो रावण व कंस का हुआ था। इस अवसर पर उन्होने महाभारत , रामचरितमानस आदि अनेक पुराणों के प्रेरक आख्यान सुनाए।

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