संजय दुबे
इस साल कांस फिल्म फेस्टिवल में क्लासिक फिल्मों की श्रंखला में भारत की फिल्म”मंथन” दिखाई गई।
भारत में कलात्मक फिल्मों का एक दौर 1960से1980के दशक में चला था। ये फिल्मे मसाला फिल्म न होकर” जो है जैसा है”के सिद्धांत पर आधारित हुआ करती थी। इस दौर में अनेक निर्माता निर्देशक हुए इनमे से एक नाम श्याम बेनेगल का है कलाकार भी आए जैसे नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी।
कलात्मक फिल्मों के लिए ऐसे विषय चुने जाते थे जिनका सादगी जीवन से सरोकार हो। पचास साठ के दशक की बात है।गुजरात में दूध बिक्री के लिए माफिया हुआ करता था जो सस्ते में दूध खरीद कर महंगे में बेचा करता था। ऐसे में एक युवक का आगमन होता है जो ग्रामीण क्षेत्र में बीमार गाय के इलाज के लिए आया होता है। दूध माफिया के खिलाफ सामुदायिक खरीदी बिक्री के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित करता है। इस कार्य में जातिगत विघ्न भी खड़ा होता है अंततः देर सबेर सभी को समझ में आता है कि सामुदायिक खरीदी व्यक्तिगत लाभ है और फिर गांव के लोग ही योजना को सक्षम बनाकर माफिया को खत्म कर देते है।
मूलत ये फिल्म वर्गीस कुरियन के जीवन पर आधारित फिल्म थी। श्याम बेनेगल ने गुजरात के पांच लाख किसानों से दो दो रुपए लेकर मंथन फिल्म बनाई थी। देश में crowd funding से बनी ये पहली फिल्म थी।
इस फिल्म में गिरीश कर्नाड, नसीरुद्दीन शाह,स्मिता पाटिल मुख्य भूमिका में थी।।
ये तो हुई फिल्म की बात, आगे का सच भी जान लीजिए। वर्गीस कुरियन ने सामुदायिक दूध खरीदी का ऐसा शानदार नेटवर्क बनाया कि देखते देखते गुजरात दूध और इसके अन्य उत्पाद के गुणवत्ता पूर्ण उत्पादन के लिए पहचान बन गया। अमूल का ब्रांड और आनंद शहर आज दुनियां भर में जाने जाते है। विदेश की ब्रांडेड कंपनी भी आज तक देश के अमूल को पीछे नहीं कर पाई है। देश में अमूल के चलते हर राज्य ने दूध उत्पादन और अन्य वस्तुओं के निर्माण के लिए सामुदायिक रूप से संस्थागत ढांचा खड़ा किया है। वर्गीस कुरियन, को देश में father of milk या milk man कहा जाता है। दुख की बात तो ये है कि इस महान व्यक्ति का योगदान हरित क्रांति के जनक डा स्वामीनाथन के बराबर है लेकिन भारत रत्न नसीब नही है।स्वामीनाथन को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया हो सकता है देश के प्रधान मंत्री की आत्मा जागृत हो।