जैनम मानस भवन में श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन श्री रमेशभाई ओझा ने बताया कि हर प्राणी मृत्यु से भागता है, मरना नहीं चाहता। बच्चे को जन्म देते समय प्रसव पीड़ा मां को होती है, पर बच्चे को देखकर वातसल्य में वह दूर हो जाती है। मृत्यु की पीड़ा तो सुना जाता है अनुभव नहीं क्योकि यह तो मौत आने पर ही होगी। उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिस प्रकार एक किराये के मकान में रहते 90 साल बीत गए हो जहां से दादा-पिता को विदा किया हो यदि कोर्ट के फैसले के बाद मकान मालिक कह दे कि मकान खाली करो तो उस पीड़ा केे अनुभव का अंदाजा लगा सकते हैं। ठीक उसी प्रकार यह शरीर भी किराये का मकान है जिसे हमारे मालिक ने दिया है। शरीर में जितनी आशक्ति बनी हुई है,सब के प्रति एक लगाव रहता है,छोडकर जाने पर कष्ट होता है। शरीररूपी मुसाफिर अपने लक्ष्य को भूल जाता है। जब सत्संग, श्रीरामकथा, गीता के प्रवचन में जाते हैं तब यह जागृत होता है। पवित्र मन से भागवत सुनने से भगवत प्रेम का उदय हो जाता है। जो स्वार्थरहित, निडररहित प्रेम बना देता है। सच्चे प्रेमी की यही पहचान है कि वह मौत से भी नहीं डरता है। अपने सुख की चिंता करना वासना है,लेकिन प्रेम में तो वह प्रियतम के सुख की चिंता करता है। प्रियतम से तुम सुख पाते हो तो वह भी भोग है। प्रेम दिए की लौ है और वासना धुंआ।
संस्कृत भाषा की विशेषताएं बताते हुए कहा कि कल्चर लोगों की भाषा है संस्कृत,शालीन व्यक्तित्व वाले हैं उनकी भाषा है संस्कृत। भाषा विचारों की अभिव्यक्ति को प्रकट करता है। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाओ जरूर पर संस्कृत का कुछ श्लोक भी तो सिखाओं ताकि गर्व से कह सको हम हिंदू है-हम सनातनी हैं। अंधे भक्त होकर वेस्टर्न कल्चर का अनुसरण कर रहे हैं, लेकिन शायद ये नहीं मालूम कि यूरोप-लंदन में भी कई ऐसे स्कूल हैं जहां संस्कृत की क्लास में श्लोक सिखाये जाते हैं। उपनिषेदों के मंत्र बोलते हैं। इसलिए सब दिशाओं के जो सुविचार हो उसे प्राप्त करें, अपनी मातृभाषा पर गौरव करो। हमारा सनातन धर्म जीवंत है, था और हमेशा रहेगा।