आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट
आज के दौर में लोग शिक्षा को महत्व देने की बात करते हैं शिक्षा ग्रहण करना अच्छी बात है किंतु आधुनिकता का बहाना बनाकर संस्कारों का त्याग विनाश का कारण है हम कहीं खो गए हैं संस्कारों से बहुत दूर हो गए हैं हमारे धार्मिक ग्रंथ जो हमारे जीवन जीने की शैली को बताते हैं पता नहीं घर के किसी कोने में रखे रहते हैं भारतवर्ष जैसे देश में वृद्ध आश्रम की मांग बढ़ रही है माता-पिता अपने बच्चों पर बोझ बनकर रह गए हैं जिस शराब (मदिरा) को राक्षसों का पेय माना जाता है आज वही पेय चौदह पंद्रह वर्ष के बालकों की पहली पसंद बनता चला जा रहा है अब आवश्यकता है जागना होगा और जागना होगा धार्मिक ग्रंथो से अपने बच्चों को जोड़ना होगा उन्हें शुरुआत से ही बड़े बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाना होगा आज के दौर में गांव में तो काफी हद तक संस्कार सम्मान देखने को मिल जाता है किंतु यहां भी ज्यादातर बड़े बुजुर्ग अपने बच्चों से तंग रहते हैं और पारिवारिक मोह के कारण शासन की भी सहायता नहीं ले पाते समाजसेवी सुमित शुक्ला का कहना है कि सभी लोगों को मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाना होगा समाज के जागरूक लोग शासन समाजसेवी और मीडिया सभी को मिलकर लोगों के बीच बड़ों का आदर और संस्कारों को बचाने के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए यह कदम हमारे विश्व गुरु बनने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा जरूर करेगा